लेखनी कहानी -19-Mar-2024
ना कुछ वह कहती है
ना मैं कहता हूं
बस यूं ही एक दूजे को
देख निगाहें चुराता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
फलक आसमान से भी ज्यादा
चाहत एक दूजे का रखता हूं
नदी की धारा सा
कल-कल एक दूजे में चलता रहता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
अंतर मन ही मन
बातें चार करता हूं
एक दूजे में खोकर
एक दूजे का सिंगर करता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
अपने आप को भूल कर
जहां-तहां पड़ा रहता हूं
पता नहीं क्या हो गया है
जो ख्वाबों में खोया रहता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
कभी ऐसा होता है
सामने किसी को ना देख पाता हूं
एक जोर की आहट लगाकर
सबको अचंभित कर देता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
प्रबल इच्छा करती है उनसे कुछ कहने को
पर टालते रहता हूं
एह सांसों का जादूई छड़ी है
जो कुछ कुछ बातें करता रहता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
पर सामने से कुछ
कहने से डरता हूं
जबकि शेर सा फौलादी सिना है
फिर भी सामने उसकी चूहा बन जाता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
अजब एहसास है
जिसे छू कर मन ही मन खो जाता हूं
दूर होता हूं उससे बहुत
मगर पास सा लगने लगता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
कभी यूं ही मुस्कुराने तो कभी सदमे में खो जाता हूं
शायद मोहब्बत यही है
जो मैं, महसूस कर पाता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
चाहता हूं कुछ बात करूं
फिर ना जाने क्यों रूक जाता हूं
मेरी जिंदगी है वह
यही सोच खामोश हो जाता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
बातें बहुत है बताने को
लेकिन यही पूर्ण विराम लगता हूं
मोहब्बत मोहब्बत मोहब्बत
मोहब्बत में जीता मरता हूं
ना कुछ वह,,,,,,,,,,
संदीप कुमार अररिया बिहार 💐
Gunjan Kamal
04-Apr-2024 02:14 AM
बहुत खूब
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Mohammed urooj khan
22-Mar-2024 12:22 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Varsha_Upadhyay
21-Mar-2024 04:46 PM
Nice
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